आज समूचे भारत में डायबिटीज या मधुमेह के मरोज़ों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ती जा रही है, जिसकामुख्या कारण है आधुनिक जीवनशैली और असंतुलित खानपान। आजकल की भागदौड़ और प्रतिस्पर्धाभरी ज़िन्दगी में अगर हमने अपनी जीवनशैली और खानपान में परिवर्तन नहीं किया तो डायबिटीज सेग्रस्त लोगो की संख्या भढ़ती ही जाएगी। हालांकि देश में अभी भी बहुत से लोग इस रोग के प्रति ज्यादाजागरूक नहीं है। जागरूकता होगी तो बचाव होगा, क्योंकि जबतक हमें किसी रोग के सम्बन्ध में जरूरीजानकारी नहीं होगी तब तक हम उस रोग से बचने के उपाय खोजने में असमर्थ रहेंगे।
मधुमेह वह रोग होता है जिसमें रक्तगत शर्करा या ब्लड- शुगर का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है। भढ़ती हुई शर्करा की दो वजह हो सकती हैं जैसे शरीर में मौजूद पेन्क्रियाज नामक ग्रंथि द्वारा इन्सुलिन हॉर्मोन को पर्याप्त मात्रा में निर्माण नहीं करना या शरीर की विभिन्न कोशिकाओं द्वारा इंसुलिन हॉर्मोन का ठीक तरह से उपयोग नहीं कर पाना। कुछ रोगियों में ये दोनों ही अवस्था मधुमेह का कारण हो सकती है।
दरअसल हमारा शरीर भी एक मशीन की तरह है जिसे समय - समय पर ईंधन की आवश्यकता होती है , यह ईंधन हमें हमारे द्वारा किये गए भोजन से प्राप्त होता है। जिसे हमारा शरीर अपनी जरूरत के अनुसार अपने सभी कार्य को संपन्न करने के लिए शर्करा में परिवर्तित कर प्रयोग में लता है। इसीलिए जब कभी हम भोजन नहीं करते तो हमारे शरीर में शर्करा की मात्रा कम हो जाती है जिसके कारण हमारा शरीर कमज़ोरी का अनुभव करता है।
हमारे रक्त में शर्करा की सामान्य मात्रा 70 से110 मिलीग्राम प्रतिशत के स्तर पर भूखे पेट और 110 से 140 मिलीग्राम प्रतिशत के स्तर पर भोजन के दो घंटे बाद होती है और इस स्थिति को सामान्य बनाये रखने का काम करता पेन्क्रियाज ग्रंथि द्वारा स्रावित इन्सुलिन हॉर्मोन।
आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. अरुण खेरिया बताते हैं, डायबिटीज होने का प्रधान कारण जठराग्नि या पाचन शक्ति का मंद होना है। असंतुलित खानपान और अनियमित रहन - सहन के चलते जब हमारी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है तो खाने का पाचन भलीभांति नहीं हो पाता जिससे आमाशय या पेट में आम रस का निर्माण होता है, आधुनिक भाषा में आम रस को टॉक्सिन्स कह दिया जाता है। यह आम रस जब आंत्र द्वारा अवशोषित होकर रक्त-प्लाज्मा में मिलता है तो कफ दोष को प्रकुपित करता है। प्रकुपित कफ का रक्त के प्रवाह के साथ प्रसार होने से शरीर की विभिन्न कोशिकाओ पर कफ युक्त आवरण बनने लगता है जिसमे पेन्क्रियाज की बीटा कोशिकाएं भी शामिल है जहाँ पर इन्सुलिन हॉर्मोन का निर्माण और स्राव होता है। कफ युक्त आवरण के फलस्वरूप इन्सुलिन हॉर्मोन का निर्माण कम हो जाता है जो आगे चलकर आवरण की कठिनता के आधार पर पूर्णतः रुक भी सकता है।
शरीर की बाकी कोशिकाओं पर इस आवरण का प्रभाव यह पड़ता है की कम मात्रा में निर्मित होने पर भी इन्सुलिन हॉर्मोन के रासायनिक सूत्र को ये कोशिकाएं पहचान नहीं पाती और इन्सुलिन हॉर्मोन जो शर्करा के कोशिकाओं में प्रवेश के लिए सहायक का कार्य करता है, अपना कार्य पूरा करने में असफल रहता है, जिससे शर्करा का कोशिकाओं में प्रवेश नहीं हो पाने के साथ उसका उचित उपयोग भी सामान्य रूप से नहीं हो पाता और उसका स्तर रक्त में बढ़ता ही जाता है जिसे मधुमेह या डायबिटीज के रोग से जाना जाता है।
इसीलिए आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. अरुण खड़िया के अनुसार अगर हमें गंभीर रोग डायबिटीस पर विजय हासिल करनी है तो सबसे पहले अपनी पाचन शक्ति को प्रदीप्त करना होगा, जिससे हानिकारक आम या टॉक्सिन्स का निर्माण नहीं हो सके। साथ ही साथ हमें ऐसी आयुर्वेदिक औषधियों और खानपान का सेवन करना चाहिए जो हमारे शरीर की कोशिकाओं से कफ युक्त आवरण को आसानी से ख़त्म कर सके। जिससे रोग पर सिर्फ नियंत्रण ही नहीं बल्कि रोग को जड़ से ख़त्म भी किया जा सके।